मैं कौन हू उसे अब क्या बतलाऊ
मैं कौन हू उसे अब क्या बतलाऊ
जो उस इश्क़ को ही भूल गया ....अब उसे क्या याद दिलाऊ
ज़िंदगी वैसी बिल्कुल भी नहीं ..जो उसने दिखलायी थी
जो भूल गया उस वक़्त को ही.. अब उसे क्या याद दिलाऊ
खामोश बैठे है बाते कर रही फ़िज़ा दरमियाँ
जो भूल गया उन बातो को...अब उसे क्या याद दिलाऊ
रहम ही सही, उसने छेड़ा तो उन बातो को
मज़लूम मे कोरा ही रह गया ... अब उसे क्या याद दिलाऊ
छूट रहा था हाथ उसका , वक़्त बह रहा था हवाओ सा
दिल मे एक यादो का हजूम उठा ..अब उसे क्या याद दिलाऊ
जा रही थी इस बार फिर कुछ नये वादे करके
मुकमल जो वादे हुए ही नहीं....अब उसे क्या याद दिलाऊ
साँसे चल रही थी आरी सी जिस्म मे
वो दर्द की दवा थी ..अब उसे क्या याद दिलाऊ