खाके किसी के दर से ठोकर वो
खाके किसी के दर से ठोकर वो
देखो गिरी है आज चोखट पर मेरी वो
कहा मैंने मोहब्बत है तुमसे बेपनाह, और हंस दि थी वो
देखो आज मोहब्बत के लिए तबायफ सी भटक रही वो
मेरी मोहब्बत को जिस्म की भूख समझती थी वो
देखो आज इस वहसी में एक दीवाना तलाश रही वो
एक अरसे बैठा था,पर दिल का दरवाजा ना खोले थे वो
देखो आज दिल की एक गली के लिए तरसे वो
चारासाजी करते थे , अपनी बस एक मुस्कान से वो
देखो आज अपने जख्म लिए घूम रहा, एक चारगार की तलाश में वो
शर्फ कर अपनी जवानी को, लौट आए है आज वो
देखो जिस्म की प्यास हमें भी नहीं, पर उतने अच्छे हम भी नहीं जितने थे बुरे वो
बेजार थी, पर ज़िन्दगी हमने भी काटी , अब काटेगी वो
देखो"मुन्तजिर" ...अब अंधेरे में मौत तलाश करेगी वो